गंगा



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है पवित्र पावन नदी, गंगा जिसका नाम।
निर्मल नीर की बदली, लेती नहीं विराम।। 1
उज्ज्वल स्वच्छ नील जल, देती सबको प्राण।
तरल नीर नीलाभ को, किया मलिन निष्प्राण।। 2
सुरधुनि, सुरसरि, सुरनदी, कितने तेरे नाम।
मिट्टी को उर्वर करे, माँ बहती अविराम।। 3
जिस पथ से गंगा बहे, देती जीवन धार।
बरसाती ममता सदा, सबको करे दुलार।। 4
गावों की जीवन बनी, खेतों की श्रृंगार।
संचित प्राणों को करे, महिमा बड़ा अपार।। 5
पाले अपने गर्भ में, कितने जीव हजार।
पाप सभी धोती रही, गंगा बड़ी उदार।। 6
परंपरा ये देश की, पर्व गीत त्योहार।
साक्षी वेदों की रही, गंगा ही आधार।। 7
भारत की गरिमामयी, देश धर्म का मान।
जीवन मोक्षदायिनी, गंगा का स्नान।। 8
गंगा सिर्फ नदी नहीं, इसी से है विवेक।
गंगा ही तो सत्य है, गंगा ही है टेक।। 9
गंगा कितने दुख सहे, बिना किये आवाज।
मुँह खोलने का कुल में, होता नहीं रिवाज।। 10
अविरल निर्मल नित बहे, हो गंगा सम्मान।
कलकल बहने दो इसे, दे दो इतना मान।। 11
कण कण कचरे से भरा, बहती विषाद के संग।
सिसक सिसक कर रो रही, इसकी मृदुल तरंग।। 12
गंगा मैली हो गई, है वेदना अथाह।
बेसुध हो चलती रही, निश्चल पड़ा प्रवाह।। 13
जो कुछ भी नित हो रहा, गंगा जी के साथ।
पता आप को क्या नहीं, इसमें किसका हाथ।। 14
मानव अंधा हो गया, फैला रहा विकार।
आँचल गंदा कर दिया, गंगा व्यथा अपार।। 15
वह क्या थी क्या हो गई, गंगा, गंगा खुद हैरान।
अपनी हालत देखकर, है बहुत परेशान।। 16
नित दिन विष से जूझती, गंगा बड़ी उदास।
रंग-रूप अब वो नहीं, ना वो बची मिठास।। 17
लाचार असहाय बनी, गंगा है मजबूर।
अब अपनी हैसियत से, होती जाती दूर।। 18
अनुपम सुन्दर देश ये, तुझ से ही धन धाम।
दो मुझको आशीष नित, गंगा तुझे प्रणाम।। 19
🌹 🌹 🌹 🌹 —लक्ष्मी सिंह 💓 ☺

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