वसंत
कण-कण सुरभित रस भरा, मधुरिम हुए दिगंत।
चहुँ दिश कुसुमित यह धरा, सुषमा सरस वसंत।। १
प्रेमी प्रियतम नाम से, लिखा प्रणय का पत्र।
प्रिय वसंत का आगमन, काम उठाया शस्त्र।।२
चले बसंती जब पवन , नस-नस उठती आग।
लगी लड़खड़ाने घटा, मन मचले अनुराग।। ३
रंग-बिरंगे फूल के, पहने हुए लिबास।
रंग बसंती आ गया, लेकर मौसम खास।। ४
फिर वसंत आया लिये, रंगों की सौगात।
रूप, रस और गंध की, सपनों की बारात।। ५
हरित चुनरिया ओढ़ कर, पहने पुष्पित माल।
मधुप तितलियों को करे, ऋतुपति आज निहाल।। ६
वसंत लेकर आ गयी, विविध-विविध से रंग।
कली-कली खिलने लगी, उड़ने लगी पतंग।। ७
सरस-सुखद मनभावनी, ले निर्मल आनंद।
मदन मधुर प्याला लिए, धूम रहा स्वच्छंद।। ८
आओ प्रियतम हम रचे, सपनों का संसार।
प्रेम सुधा अंतस भरे, झूमे मस्त बहार।। ९
मन भीतर पतझड़ रहा, बाहर रहा वसंत।
एक आग जलती रही, प्रिय बिन ऋतु का अंत।। १०
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