गाँव।
बरगद पीपल की जहाँ ,फैली शीतल छाँव।।१
शुद्ध दूध ताजी हवा,रंग-बिरंगें फूल।
कच्ची-पक्की सड़क से ,उड़ती रहती धूल।।२
मक्के की रोटी जहाँ ,दूध-दही के खान।
सुबह-सबेरे जल्द ही ,होता है जलपान।।३
हर ऑंगन तुलसी लगी ,दान-धर्म-सुख-सार।
हरियाली के बीच में ,है सुख-शांति अपार।।४
प्रकृति की अनुपम छटा ,कितने सुन्दर रूप।
मनमोहक हर दृश्य है ,बाग-बगीचा कूप।।५
लहलहाती हरी फसल ,भरा खेत-खलिहान।
बना हुआ है खेत में ,ऊँचा एक मचान।।६
खेती तपती धूप में ,करते जहाँ किसान।
धरती माँ की कोख से ,पैदा करते धान।।७
कभी भूल पाऊँ नहीं,इस मिट्टी की गंध।
घुला-मिला जिसमें रहा ,पसीने की सुगंध।।८
सीधा-सादा-सा सरल ,जीवन जीते लोग।
एक-दूसरे को करें ,हर संभव सहयोग।।९
घर मिट्टी से है बने ,घास-फूस खपरैल।
हल-हलवाहे हैं जहाँ ,दरवाजे पर बैल।।१०
चुल्हे मिट्टी के जहाँ ,मीठे गुड़ पकवान।
हुक्का पीते बैठ कर ,दादा जी दालान।।११
हुक्का पीते बैठ कर ,दादा जी दालान।।११
चरवाहा ग्वाला जहाँ , होता कृष्ण स्वरुप।
पनहारन मटकी लिए , है राधा का रूप।।१२
राम राम की ही जहाँ , ध्वनि सुबह शाम।
चले हाय हेलो नहीं , कहते सीता राम ।।१३
चैता ,कजरी, फागुआ ,सोहर औ'' मलहार।
ओत-प्रोत संस्कार से ,नित दिन है त्यौहार।।१४
चिड़ियों की कलरव जहाँ ,कोयल कूके डाल।
श्वेत-लाल सुंदर कमल ,भरा हुआ है ताल।।१५
गाय-भैंस बकरी जहाँ ,कंडे गोबर खाद।
सादा भोजन भी लगे ,बड़ा गजब का स्वाद।।१६
बैठे पेड़ों की छाँव में , खाते रोटी प्याज।
खान पान के वो , मज़े , कहाँ शहर मैं आज।।१७
भगवन की सौगात से ,भरा हुआ है गाँव।
नयनन काजल लाज का ,बिछुआ पायल पाँव।।१८
अच्छा शहरों से लगे ,मुझको मेरा गाँव।
जुड़ी हुई जिस जगह से ,कुछ यादों के छाँव।।१९
अपनी कविता में सजा ,लूँ आरती उतार।
ग्राम्य-देव नित वंदना ,नत सिर बारंबार।।२०
- लक्ष्मी सिंह
भगवन की सौगात से ,भरा हुआ है गाँव।
नयनन काजल लाज का ,बिछुआ पायल पाँव।।१८
अच्छा शहरों से लगे ,मुझको मेरा गाँव।
जुड़ी हुई जिस जगह से ,कुछ यादों के छाँव।।१९
अपनी कविता में सजा ,लूँ आरती उतार।
ग्राम्य-देव नित वंदना ,नत सिर बारंबार।।२०
- लक्ष्मी सिंह
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