सहारा

कोई भी नहीं हमारा है। 
कविता ही एक सहारा है। 

गम ,बेबसी ,बगावत में भी ,
ये करता नहीं किनारा है। 

आँसू से भींगे पलकों पर ,
सजाता ख्वाब दोबारा है। 

जब भी जो भी कहना चाहा ,
सुनने से नहीं नकारा है। 

दबा हुआ जो मेरे अंदर ,
बहती  नदिया की धारा है। 

चुन-चुन कर मन के भावों को ,
इन कागजों पर उतारा है। 

मेरे बिखरे जज्बातों को ,
शब्दों में बांध सवारा है। 

हौसला बुलंद किया मेरा ,
ये मुझको सबसे प्यारा है।

-लक्ष्मी सिंह 

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