भाग्य


विधा-विधाता छंद

1222 -1222, 1222-1222



भाग्य

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विधा ऐसी नहीं कोई, पढ़े जो भाग्य का लेखा।

मनुज के हाथ में होती, मनुज के हाथ की रेखा।। 

करोगे कर्म जैसा तुम, बनेगी भाग्य की रेखा।

खुदा के पास होता है मनुज के कर्म का लेखा। 



विधाता ने लिखा है जो कभी वह मिट नहीं सकता।

मगर इक कर्म के आगे खुदा भी टिक नहीं सकता।।

फसल वह काटता जो जिस तरह का बीज बोता है। 

किया आलस सदा जिसने मिला हर चीज खोता है।।



दिया है भाग्य भी दस्तक उसी के द्वार पर आकर। 

किया विश्वास जिसने है सदा निज कर्म के ऊपर। 

प्रबल हो सोच तो पर्वत वहाँ पर सिर झुकाता है। 

नदी भी छोड़ दे राहें समंदर तैर जाता है।



भला यह कौन कहता है कि खाली हाथ आया है। 

कहा मानव जगत को छोड़ खाली हाथ जाता है। । 

मगर सच है मनुज का भाग्य उसके साथ आता है। 

मनुज का कर्म जाते वक्त उसके साथ जाता है।। 



अँधेरा भाग्य दीपक का, उजाला कर्म है उसका। 

जला चुपचाप से जग में, उजाला धर्म है उसका।। 

धरो तुम धैर्य ऐ! मानव, यही है रूप का गहना। 

अमिट है लेखनी रब की, मिला जो भाग्य है सहना ।।

-लक्ष्मी सिंह

नई दिल्ली

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