कर्म


कर्म दैविक रूप है, तो कर्म ही आकार है।
कर्म दैविक संपदा है ,मुक्तियों का  द्वार है।
 कर्म जो भी श्रेष्ठ करता, ईश का अवतार है।
कर्म से जीवन जगत का, स्वप्न सब साकार है।

कर्म पूजा साधना है, पुण्य का आधार है।
कर्म के आधार पर ही, भाग्य का विस्तार है।
वेद गीता में लिखा है, कर्म सुख का सार है।
कर्म जीवन मर्म है, औ प्रेरणा उपकार है।

वक्त बदला है मनुज जो, कर्म को तैयार है।
कर्म योगी हो मनुज तो, लक्ष्य सब स्वीकार है।
स्वेद शोणित मोतियों से , कर्म का श्रृंगार है।
कर्म से जीवन सरल है, मुश्किलों से पार है।

कर्म जो करता नहीं है, वह मनुज बेकार है।
कर्म गठरी बाँध कर ही, चल रहा संसार है।
हो भरोसा कर्म पर, मिलते सभी अधिकार है।
कर्म से जीवन सजा, आनंद ही उपहार है।

-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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