प्रकृति


प्रकृति एक "माँ“की तरह, रखती सबका ख्याल।
 हैं ये जीवन दायनी,  इसको रखो सँभाल। ।

नीर  , हवा , भोजन ,वसन, मुफ्त लुटाती दान।
स्वार्थ भरा फिर भी मनुज, करे प्रकृति नुकसान।।

प्रकृति नटी सबसे सुखद, रखती हमें निरोग।
बाँट रही है स्नेह से, सबको छप्पन भोग।।

प्रकृति नष्ट करना नहीं, विनती बारंबार।
हरी-भरी धरती रहे, सुरभित हो संसार।।

-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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