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Showing posts from January, 2018

चंद्र ग्रहण

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        आज चाँदनी रो रही, चाँद हुई है ग्रास। गहन अँधेरा हो गया, व्याकुल गगन उदास।।१। मनोदशा सबसे गहन, चंद्र ग्रहण की रात। आज सखी किससे कहूँ, अपनी मन की बात।।२। चंदा मामा हो गये, गुस्से से अति लाल। राहु-केतु फिर आ गये, बन कर उनका काल।। ३।          – लक्ष्मी सिंह 

वसंत

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      कण-कण सुरभित रस भरा, मधुरिम हुए दिगंत। चहुँ दिश कुसुमित यह धरा, सुषमा सरस वसंत।। १ प्रेमी प्रियतम नाम से, लिखा प्रणय का पत्र। प्रिय वसंत का आगमन, काम उठाया शस्त्र।।२ चले बसंती जब पवन , नस-नस उठती आग। लगी लड़खड़ाने घटा, मन मचले अनुराग।। ३ रंग-बिरंगे फूल के, पहने हुए लिबास। रंग बसंती आ गया, लेकर मौसम खास।। ४ फिर वसंत आया लिये, रंगों की सौगात। रूप, रस और गंध की, सपनों की बारात।। ५ हरित चुनरिया ओढ़ कर, पहने पुष्पित माल। मधुप तितलियों को करे, ऋतुपति आज निहाल।। ६ वसंत लेकर आ गयी, विविध-विविध से रंग। कली-कली खिलने लगी, उड़ने लगी पतंग।। ७ सरस-सुखद मनभावनी, ले निर्मल आनंद। मदन मधुर प्याला लिए, धूम रहा स्वच्छंद।। ८ आओ प्रियतम हम रचे, सपनों का संसार। प्रेम सुधा अंतस भरे, झूमे मस्त बहार।। ९ मन भीतर पतझड़ रहा, बाहर रहा वसंत। एक आग जलती रही, प्रिय बिन ऋतु का अंत।। १०      —लक्ष्मी सिंह   

मकर संक्रांति

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मकर राशि में सूर्य जब, करने लगे प्रवेश। पर्व मकर संक्रांति का, दे जाते संदेश।। 1 सूर्य मकर संक्रांति का, झिलमिल दिखी उजास। छोटे दिन बढ़ने लगे, हुआ सुखद आभास।। 2 तिल-गुड़ औ चूड़ा-दही, फिर खिचड़ी का स्वाद। थामे डोर पतंग की,अपनेपन की याद।। 3 अंबर में उड़ने लगी, पीली लाल पतंग। फँसी हुई हर हाथ में, चरखी डोरी संग।। 4 फूलों के गहने सजे, आशा के मधुमास। डोरी तेरे हाथ में, रखना मुझको पास।। 5 अलग-अलग हर राज्य में, अलग-अलग हैं नाम। होता पूरे देश में, मकर पर्व अभिराम।। 6 गुड़-तिल भगवन को चढ़े, शुभ खिचड़ी का भोग। पुण्य काल संक्रांति में, कई महासंयोग।। 7 पुण्य काल संक्रांति में, कर गंगा स्नान। गुड़ तिल कंबल का करें, हर गरीब में दान।। 8 सबको सब खुशियाँ मिले, और मिले सुख-शांति। अपनापन गुड़ में लिये, आयी है संक्रांति।। 9 —लक्ष्मी सिंह 

होली

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पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रँगि जाय। भक्ति भाव रस प्रेम से, तन मन भींगा जाय।। 1 होली की दस्तक भई, मौसम घोले भंग। कहीं कहीं महफिल जमी, कहीं कहीं हुड़दंग।। 2 लौंगा और इलाइची, का लगवाया पान। सुन कर मेरी प्रार्थना, जुटे सब मेहमान।। 3 होली ऐसी मद भरी, बूढ़े भये जवान। नैनों से घायल करें, मारे तीर कमान।। 4 होली के दिन भूलिए, भेदभाव अभिमान। तन मन को निर्मल करे, प्रेम रंग पहचान।। 5 रोम-रोम चंपा घुली, बेला महके अंग। अबके होली जो मिले, पिया हमारे संग। 6 गोरे गोरे अंग पै, चटख चढ़ि गये रंग। लाल नील पीले हरे, रँगे अंग प्रत्यंग।। 7 होली आई सोच के, कब से हुए अधीर। बालम आये फाग में, फिर से उड़े अबीर।। 8 हर दिन हर पल हर घड़ी, खेल रहा दिल फाग। मेरे मन में बह उठे, मृदु शीतल अनुराग।। 9 मौका आया यार ने, डाला नहीं गुलाल। मुरझाये से ही रहे, मेरे दोनों गाल।।10 गली गली टोली चली, उड़त अबीर गुलाल। धरती से आकाश तक, लागे लालम लाल।। 1 1 सजे हमारे आँगना, होली के त्योहार। बुरी बलाये दूर हो, शगुन सजाये द्वार।। 12   ...