Posts

Showing posts from December, 2017

शब्द -श्रम, भ्रम, शर्म, धर्म ,कर्म

Image
श्रम का फल मिलकर रहे, लगती थोड़ी देर। फल इतना मीठा लगे, फीके लगते बेर।।१  भ्रम में पड़ कर जो किया, खुद को ही बर्बाद पास शेष बचता नहीं, रह जाती फरियाद।।२  जाने कैसा दौर है, रही नहीं अब शर्म। सही गलत समझे नहीं, हुये लोग बेशर्म।।३  अमन चैन कायम रहे, तभी   धर्म  का मोल। पूजा पाठ अजान सब, वरना खाली बोल।।४  कलयुग में सबसे बड़ा, है मानव का कर्म। कर्म करे किस्मत बने, जीवन का यह मर्म।।५  -लक्ष्मी सिंह 

एक चतुर नार

Image
एक नार निकली चतुर, करके जब सिंगार। धीरे-धीरे से धुसी, मेरे मन के द्वार।। 1 उस नारी का दास मैं, जिससे लागे नैन। भटक रहा हूँ राह में, मिल जाये तो चैन।। 2 का-का कर कितना करे, कारे कागा शोर। उस नारी के संग ही, लागे नैना मोर।। 3 इंदु, चकोरी, चाँदनी , उस नारी का नाम। दुनिया नाचे ताल पे, ता ता थइया राम।। 4 ये चतुर होशियार है, समझ न इसको गाय। चक्कर छोड़ेगा नहीं, मर जायेगा हाय।। 5 चतुराई दुनिया करे, लाख बिछाये जाल। छुट्टी सबकी वो करे, सीधी कर दे चाल।। 6 बड़ी निगोड़ी चाँदनी, कितना मुझे जलाय। छिटके तो चुपचाप से, चित मोरा बिसराय।। 7 —लक्ष्मी सिंह  Comment  0  Views 7

हमसफ़र

Image
साथी जिसका हो जुदा, करता उसको याद। कोई जिसका हो नहीं, मिलने की फ़रियाद।। 1 एक हमसफ़र के लिए, मेरा दिल बेचैन। जब मिल जाये हमसफ़र, दिल को आये चैन।। 2 इश्क़ मुहब्बत प्यार को, कर लो ज़रा क़ुबूल । आ मेरी आगोश में, कर लो कोई भूल।। 3 चाँद देखते देखते, अरमाँ हुए जवान। था रवानी पर अपनी, इस दिल का तूफ़ान।। 4 जब महफ़िल में आ गये, कर एक एहसान। मुझको अपना ही समझ, आज का मेहमान।। 5 उफ़ हमको क्या हो गया, ले ली दिल औ’ जान। दे दे हमको अब दवा, या दे दे विष पान ।। 6 -लक्ष्मी सिंह

गंगा

Image
      है पवित्र पावन नदी, गंगा जिसका नाम। निर्मल नीर की बदली, लेती नहीं विराम।। 1 उज्ज्वल स्वच्छ नील जल, देती सबको प्राण। तरल नीर नीलाभ को, किया मलिन निष्प्राण।। 2 सुरधुनि, सुरसरि, सुरनदी, कितने तेरे नाम। मिट्टी को उर्वर करे, माँ बहती अविराम।। 3 जिस पथ से गंगा बहे, देती जीवन धार। बरसाती ममता सदा, सबको करे दुलार।। 4 गावों की जीवन बनी, खेतों की श्रृंगार। संचित प्राणों को करे, महिमा बड़ा अपार।। 5 पाले अपने गर्भ में, कितने जीव हजार। पाप सभी धोती रही, गंगा बड़ी उदार।। 6 परंपरा ये देश की, पर्व गीत त्योहार। साक्षी वेदों की रही, गंगा ही आधार।। 7 भारत की गरिमामयी, देश धर्म का मान। जीवन मोक्षदायिनी, गंगा का स्नान।। 8 गंगा सिर्फ नदी नहीं, इसी से है विवेक। गंगा ही तो सत्य है, गंगा ही है टेक।। 9 गंगा कितने दुख सहे, बिना किये आवाज। मुँह खोलने का कुल में, होता नहीं रिवाज।। 10 अविरल निर्मल नित बहे, हो गंगा सम्मान। कलकल बहने दो इसे, दे दो इतना मान।। 11 कण कण कचरे से भरा, बहती विषाद के संग। सिसक सिसक कर रो रही...

जिद्दी

Image
          जिद्दी मन का विहग ये, नहीं मानता हार। उम्मीदें घायल करे, उड़ता पंख पसार।। 1 जिद्दी सी हूँ बावरी, सुध-बुध खोती पाँव। फिर भी प्यार दुलार से, खेती रिश्ते नाव।। 2 जिद्दी मन करता वही, जो लेता है ठान। मुश्किल से लड़कर सदा, हासिल करे मकाम।। 3 मंजिल है जिद्दी बड़ी, होती नहीं करीब। करें भरोसा आप पे, भगवन लिखे नसीब।। 4 कितनी आतुरता रही, करने को हर काम। जिद्दी मंजिल की रही, सोचा नहिं अंजाम।। 5 हठ, जड़, जिद्दीपन कभी, बन जाता जंजाल। बैठे ही बिन बात के, बुलवा लेता काल।। 6 हठ, जद, जिद्दीपन सदा, होता जड़ों समान। अन्दर-अन्दर उतरता, गहरा सीना तान।। 7 -लक्ष्मी सिंह 

तिमिर

Image
जिसके हृदय सदैव ही, प्रभु का होता वास। ताप – तिमिर का तनिक भी, उसे न हो आभास।। १। पाप तिमिर सब मिट गया, फैला सत्य प्रकाश। आततायी प्रकृति का, करके समूल नाश।। २। तिमिर प्रकाश से पहले, फिर प्रकाश के बाद। सुख चाहे दुख में रहो, इतना रखना याद।। ३।         –लक्ष्मी सिंह