सुरभित स्वर्ण मुकुट पहने मधुकर सुषमा छाई है। बासंती परिधान पहन , ऋतु वसंत की आई है। आनंद उमंग संग में, भर जीवन आलिंगन में। मस्ती छाया बयार में, खिला पुष्प मन मधुवन में। प्रेम सुधा वर्षाई है, ऋतु वसंत की आई है। टेसू,पलाश वन में फूले, पीली सरसों डोल रहे। कोयलिया काली बोले, कण-कण में रस घोल रहे। महुआ रस टपकाई है, ऋतु वसंत की आई है। मादक मौसम छाया है, वसुधा के इस आँगन में। मोहक प्यारे रंगों में, वीथिन में, वन-उपवन में। नव किसलय दल छाई है, ऋतु वसंत की आई है। प्रभु हाथ सृष्टि पर फिरता, जीवन वसंत खिल उठता। मृदु सुप्त सपने सजाता, सृष्टि नव रंग मिल उठता। रूप सलोना पाई है, ऋतु वसंत की आई है। सुरभित स्वर्ण मुकुट पहने मधुकर सुषमा छाई है। बासंती परिधान पहन, ऋतु वसंत की आई है। —लक्ष्मी सिंह